21 May 2016

किसानो की आत्महत्या,कृषि की आत्महत्या हैं |

आग लगने से  रामू की झोपडपट्टी और कच्चा घर जल कर खाक हो गये,साथ ही घर में रखा अनाज और बेटी की शादी के लिए जुटाया गया सामान भी जल गया |
        रामू किसान हैं ,वही किसान.......जो देश की 67 % जनता को भोजन की गारंटी देता हैं|वही किसान जो हर ओर से बदहाली की मार झेल रहा हैं ,आर्थिक असुरक्षा ,ऋण ,दिवालियापन,फसल की असफलता और ,बीमारी झेल रहा हैं ,मुंशी प्रेमचन्द्र की कहानी “पूस की रात”के हलकू के जैसा किसान हैं रामू, ..रामू को पता नही की सरकार की कुछ योजनाये भी होती हैं उसने गाँव में कोई अफसर तक नही देखा कोई विकास अधिकारी या कृषि अधिकारी या इससे जुड़े किसी जिम्मेदार व्यक्ति को नही देखा |हाँ रामू ने कुछ लोगो को देखा हैं ...फसल बर्बाद होने की वजह  से ट्रैक्टर का  बैंक ऋण न चुका पाते अपने भाईयो की जमींन और आबरू को नीलाम करने वाले बैंक अफसरों को ,साहुकारो को और शोषको को|रामू अत्यंत निराश हैं उसको जीने की इच्छाशक्ति खत्म हो चली हैं|
        स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय कृषि का जीडीपी में 55 % योगदान था जो की 2014 तक मात्र 14% रह गया हैं | NCRB के अनुसार 1991-2004 तक 3 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं भारत में हर घंटे 2 किसान मर रहे हैं सबसे ख़राब हालत आंध्र प्रदेश,विदर्भ(महाराष्ट्र),बुन्देलखण्ड और तमिलनाडु में हैं |किसानो की इतनी दयनीय स्थिति होने के वावजूद प्रदेश की सत्ताधारी पार्टियो और केन्द्रीय सरकार की कोई ठोस पहल समझ में नही आती |
           कृषि की बदहाली के लिए प्राकृतिक कारण ,मानवीय कारण ,पर्यावरण प्रदूषण (के कारण बदलते मानसून) ,पूर्वी तट के भयंकर तूफ़ान ,चक्रवात जिम्मेदार तो हैं ही ,किन्तु तकनीक की कमी ,इन्फ्रास्ट्रक्चर का आभाव ,कृषि शोध का विकास एवं क्रियान्वयन की कमी  भी बदहाली के कारण हैं,राजनैतिक पार्टिया किसानो के हित में नीतियाँ बनाने में असफल रही हैं ,यदि भारत का अन्नदाता अपने पैरो को खेतो से हटा लेंगा तो उदद्योग और सेवाक्षेत्र का विकास अवरुद्ध हो जायेंगा |कहा भी गया हैं “भूखे भजन न होय गोपाला” अतः यदि पेट में भोजन होगा तभी मोबाईल और कम्प्यूटर की उपयोगिता भी होंगी |

19 May 2016

सबकी सुनिए ,मन की करिए |

                   मेरा दोस्त मानसिक रोगी हो चला था ,एक बेहतरीन इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक किया था ,नेशनल लेवल के उस कालेज का तीसरा टोपर था ,कम्पनियां आई लोग नौकरिया पाते गये ...वो नहीं पाया |इसी से डिप्रेस था....| नींद लाने वाली दवा खाए बिना उसे नींद तक नही आती थी |उसे घर वालो ने कुछ दिन घूमने के लिए बाहर भेज दिया ,वह लौटा,
नयी उर्जा से ,नयी शक्ति खुद को बदला और विगत वर्ष PCS का टापर बना |
                       PCS में जाना उसका ड्रीम था,हमेशा अफसर बनने की बाते करता था ,इसीलिए वह अपने इंजीनियरिंग कैरियर के साथ न्याय नही कर पा रहा था |अगर उसको नौकरी मिल गयी होती तो,जिंदगी भर वह ऐसा काम कैसे करता ?जो उसको उतना पसंद नही था ...कुछ दिन पहले कोटा से खबर आई IIT में 140 नम्बर पाने वाली एक लड़की ने सुसाईड कर ली थी ,क्यूंकि वह इंजीनियरिंग नही पढना चाहती थी किन्तु उसने अपने माँ के दबाव के कारण चुना था ,सुसाईड नोट में उसने लिखा की अपनी माँ से नफरत करती हैं साथ ही माँ को हिदायत भी दी हैं की उसकी छोटी बहन पर यह सब न थोपे ....कोटा में ऐसे सैकड़ो केस होते रहते हैं ,अभिभावक अपने सपनो को न जाने कब बच्चो पर लाद देते हैं ....वो नही कर पाए तो उनके बच्चे ये बनेंगे ,वे बनेंगे ....ध्यान रखिये बच्चे आपके माध्यम से आये जरूर हैं ,पर उनकी रूचि अलग हो सकती हैं ,उनको करने दीजिये जो करना चाहे कैरियर से जुड़ा ....आप बस सही गलत और उससे जुड़े लोगो की नीयत देखिये |वे यूनिक हैं ,उनके फिंगरप्रिंट आपसे नही मिलते ,उनकी परवरिश आपसे अलग हैं ,उनकी कैरियर सम्बन्धी चुनौतिया आपसे अलग हैं ,फिर आप उनसे ,उन सपनो को पूरा करने की आस क्यूँ लगा बैठे हैं जो आप कभी नही कर सके |
                  जो होता हैं अच्छे के लिए होता हैं , जो नही होता वो और अच्छे के लिए होता हैं |अगर मेरे दोस्त को नौकरी मिल जाती तो वह रोज टिफिन उठाता ,आफिस जाता ...फिर बॉस की डांट खाता घर आता...वही सबकुछ ,,,पर वो देश के विकास में जो सक्रीय भूमिका निभाना चाहता था उससे वंचित रह जाता ...साथ ही अपना सपना भी पूरा नही कर पता ....PCS की परिस्थितिया ,प्लेसमेंट से पायी नौकरी की तुलना में तो काफी बेहतर तो हैं ही ,साथ ही उसका बड़ा अफसर बनने का सपना भी पूरा हुआ |

17 May 2016

प्राइवेट स्कूल किस दिशा में बच्चो को धकेल रहे हैं?

2003 के वे दिन याद आते हैं जब मेरा इंटर का इग्जाम था ,सेंटर राधा रमन गर्ल्स इंटर कालेज नैनी था ,नकल लगभग न के बराबर थी ...मैंम सिर हिलाने नही देती थी ,और हम लोग नकल का सोचते ही नही थे ...,न तो हमारे स्कूल नक़ल में विश्वास करते थे ..इमानदारी और नैतिकता के साथ ..बैच(बोर्ड वालो) का भी लिहाज था ...अब परिदृश्य बदल चुका हैं|

मेरे स्टूडेंट्स ने cpmt निकाला,IIT निकाला,उनकी बात अलग सी थी ,कई मेरे ही मेडिकल कालेज में जूनियर और सीनियर भी हैं |पर इनमे कुछ करने की ,कुछ अलग ही बर्निंग डिजायर थी |एक सेकंड डिविजनर दोस्त ने आईएएस की परीक्षा पास की तो परसेंटेज बनाम वास्तविक योग्यता पर बहस छिड़ना लाजमी था |

मेरे स्टूडेंट कुलदीप 96.4 प्रतिशत के साथ तथा सर्वेश ने 96 प्रतिशत के साथ इसी साल इंटर उत्तीर्ण किया ,इन लोगो ने पढाई में मेहनत भी की थी ...पर कहावत हैं न ..”बहती गंगा में हाथ धोने वाली” ..यकीन हैं की मौका पाते ही ......हाथ अजमाया ही होंगा ...|पर परिवेश के अनुसार एडोप्ट करना पड़ता हैं ,बधाई हो बच्चो |जहा टीचर नकल न करने वालो को क्लास से बाहर बैठा देते हो..भीड़ चाल में रहना तुम्हारी मजबूरी भी हो सकती थी |
                                  एक ही स्कूल के टापर ...वो भी ...उस बदनाम स्कूल के जो नकल के लिए ब्लैक लिस्टेड रहा था कभी |....फिर यू पी बोर्ड की सफाई...”रिजल्ट पारदर्शी तरीके से घोषित किये गये हैं”|इलाहाबाद जनसंख्या की दृष्टि से प्रदेश का सबसे बड़ा जिला हैं जहाँ पर सबसे अधिक इंटर कालेज भी हैं ...हिंदी मीडियम यू पी बोर्ड का कालेज जहाँ बच्चे सुविधा के अनुसार एडमिशन लेते हैं की प्रबन्धक इग्जाम के समय व्यवस्था कर पाते हैं की नही ,व्यवस्था से मेरा तात्पर्य नक़ल की व्यवस्था ,सेंटर को मन वांक्षित जगह लेने की व्यवस्था ..से हैं ,स्कूल  सेंटर बदलवाने तक को घूस देते हैं |.जो लोग ऐसा करते हैं उनके यहाँ भीड़ ही भीड़ ...|पर क्लास में न कोई पढ़ता हैं ...न पढ़ाता हैं |स्कुल नक़ल को बेस बना लिए हैं ...जहाँ कभी बेस पढाई हुआ करती थी ...
                          यू पी बोर्ड्स के निकलने वाले टोपर का कुछ खास नही होता ....पालीटेक्निक,IERT ,सबका इग्जाम देते हैं कहीं नही हुआ ..तो फिर इलाहाबाद की बड़ी कोचिंगो में एडमिशन लेकर माँ बाप पर अतिरिक्त बोझ बनते हैं ...बड़ी मेहनत से दो जून की रोटी जुटाने वाले गार्जियन बच्चे का परसेंट देखकर अपना पेट काटकर उसे खर्चा देते हैं ,पर जिसका यूनिवर्सिटी के इग्जाम में नही हुआ उसका IIT में भला कैसे हो सकता हैं ?साईड में कोचिंग फल फूल रहे हैं ....पांडे सर तो LED लगवा लिए हैं ६०० बच्चो को एक बैच में पढ़ाते हैं .....CP शर्मा ,सुजीत सर सबकी कोचिंगे हैं ......न जाने कित्ती कोचिंगे इलाहबाद में यु पी बोर्ड के बच्चे चला रहे हैं ....अच्छा इन कोचिंगो में सेलेक्सन जिनका दिखाया जाता हैं ...वे कभी न कभी यहाँ पढ़े भी रहते हैं भले ही वे सेलेक्सन के समय कोटा में रहे हों ,फिर इनकी एक पेज वाली लिस्ट में २००३ में सिलेक्टेड बच्चे से लेकर २०१६ तक के बच्चे रहते हैं ...जनमानस संख्या देखता हैं ...साल नही ....होप देखता हैं .......जाल में फस जाता हैं ...
इसका क्या हल हो सकता हैं ?
प्राइवेट स्कूल किस दिशा में बच्चो को धकेल रहे हैं?

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