9 January 2014

कन्या भ्रूण हत्या :भारतीय समाज पर कलंक

       कन्या भ्रूण हत्या :भारतीय समाज पर कलंक

           विश्व भर में भारत ही एक ऐसा देश हैं ,जहाँ महिलाओं को पूजा जाता हैं |साल में दो बार नवरात्रि के अवसर पर नौ नौ दिन व्रत रखे जाते हैं |रोज सुबह अखबार में महिलाओं से सम्बन्धित हर तरह के प्रताड़ना की खबरें ..लगभग हेडलाईन्स के रूप में होती हैं |दोस्तों !आज मैं आप सबका ध्यान 'कन्या भ्रूण हत्या' जैसे जघन्य अपराध के और ले जाना चाहता हूँ ,जिसकी जद में आज लगभग पूरी भारत माता हैं |
    यह सेवेंटीज का वक्त था ,जब हर समस्या ..बेरोजगारी,गरीबी...आदि के लिए बढती हुयी आबादी को जिम्मेदार माना जाता था ,उस समय देश के बड़े सरकारी अस्पतालों में जनसंख्या नियन्त्रण के लिए तमाम योजनाओं में एक योजना यह भी मुफ्त थी,की यदि बच्चा मेल चाईल्ड होता था तो ठीक ,किन्तु यदि फिमेल चाईल्ड होती तो उसकी भ्रूण में ही हत्या कर  दी जाती थी,कुछ स्वयंसेवी संगठनों के विरोध के कारण सरकार ने इस व्यवस्था पर तुरंत रोक तो लगा दी,किन्तु तब तक यह जघन्य अपराध उन भव्य सरकारी अस्पतालों से निकल कर गली कुंचो में स्थित नर्सिंग होमो तक पहुँच चुकी थी|
   समय के साथ साथ चिकित्सा जगत में तकनीकी विकास ने ,खासकर अल्ट्रासाउंड की खोज ने भ्रूण के लिंग की जांच को आसान बनाया हैं | इससे पहले अमीनोसेंटेसिस विधि थी ,जिससे रिस्क बहुत था {बच्चा गिरने का...या अन्य एब्नोर्मल समस्याए हो सकती थी}|विशेषकर लिंग जांच में अल्ट्रासाउंड मशीन के अंधाधुंध प्रयोग से अल्ट्रासाउंड मशीन के निर्माताओ की पौ-बारह हो गयी ,वर्तमान में इसका बाजार तकरीबन ३००० -४००० हजार करोड़ का हैं |पिछले तीस-चालीस वर्षो में 3,00,00,000{लगभग तीन करोड़}लडकियों की गर्भ में हत्या हो चुकी हैं |
  यह एक ऐसा जघन्य अपराध हैं जिसमे पेरेंट्स के साथ एक डॉ.भी मुजरिम होता हैं |आज हर साल तकरीबन दस लाख बच्चियो की गर्भ में हत्या हो रही हैं,इस काम में देश भर के नामी डॉ.लगे हुए हैं,मेरे इलाहाबाद में तकरीबन दो दर्जन डाक्टर गैर-क़ानूनी रूप से नर्सिंग होम चलाने के साथ साथ ...कन्या भ्रूण हत्या के इस जुर्म में शामिल हैं|ताजुब की बात ये हैं की निगरानी करने वाली कमेटी M.C.I. ने आज तक{पुरे भारत में} किसी डॉ का लाईसेंस रद्द नही किया |इन हॉस्पिटल ने इसे एक पैकेज की तरह पेश किया हैं ,यानी अल्ट्रासाउंड +अबोर्शन |कभी कभार पैसा कमाने के लिए ये इतने गिर जाते हैं की  जेंडर भी नही देखते बस्स....अल्ट्रासाउंड +अबोर्शन |इन डाक्टरों में कोई समाज-सेवी हैं ,कोई IVF तकनीक का माहिर हैं ,कोई विलायत से स्पेशल पढ़ाई की हुयी हैं ...|हाँ ...यकीन से कह सकता हूँ की इंसान नही हैं.... ये लोग |मैं उस भारत का रहने वाला हूँ ,जहाँ से ४५ हजार करोड़ की जेनेरिक दवाये{एक्चुअल साल्ट} विदेशो को जाती हैं ,किन्तु उसी भारत में एक गरीब बच्ची जरुरी दवाओ के आभाव में मर जाती हैं |डायबिटीज की जो दवा १८० रूपये  की हैं उसकी जेनेरिक दवा की कीमत २ रूपये से भी कम की आती हैं |कैंसर की एक दवा जिसकी कीमत सवा लाख हैं ,उसकी जेनेरिक दवा छ हजार से दस हजार के बीच में उपलब्ध हैं |किन्तु हमारे शहर के डॉ जेनेरिक दवा की बातें करेंगे नही बल्कि उलटे ही एक दो फ़ालतू दवा जरुर लिख देंगे |दवाओ पर डाक्टर का कमिशन तीस परसेंट के रेट से चल रहा हैं | विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत की ६५% आबादी जरुरी दवाओं की कमी से जूझ रही हैं |
  कन्या भ्रूण हत्या कौन कराता हैं ?अशिक्षित आदिवासी............ ?आप गलत हैं ,आदिवासी लोग  तो खुशियाँ मनाते हैं,राजस्थान ,छतीसगढ़ ,मध्यप्रदेश देख आईये |अशिक्षित जनता.............. ?नही उसे पता ही नही हैं |कन्याओ की भ्रूण में हत्या कराने वाले प्रोफेसर हैं,डॉ.हैं,इंजीनियर हैं ,आई ए एस हैं ,हेल्थ डिपार्टमेंट के लोग है ,सी ए हैं ,काल सेंटर में काम करने वाले लोग हैं | आज परिणाम यह की 1000 लड़को पर 914 लडकियां  बची हैं{२०११ की जनगणना} ,यह रेशिओ लाखो ,करोड़ो लडको पर लडकियों की संख्या में  काफी डिफ़रेंस पैदा करता हैं |आने वाले दस सालो में २ करोड़ लडको को शादी के लिए लड़कियां ही नही मिलेंगी |हरियाणा में सबसे बदतर स्थिति हैं |वहां बड़ी संख्या में कुंवारों की फ़ौज हैं ,जिनकी कुंठा से बची खुंची लड़कियां आक्रान्त हैं ,छेड़छाड़ ,,तेजाबी हमले ,गैंगरेप आदि की घटनाए बढ़ी हैं |
       इसका सबसे स्याह-पहलू ह्यूमन-ट्रैफिकिंग हैं |शादी के लिए बिहार,छतीसगढ़,आंध्र प्रदेश,झारखंड आदि प्रदेशो से बहुसंख्या में खरीद कर गरीब लड़कियां लायी जाती हैं,जिनको बार  बार बेचने की घटनाएँ सामने आती हैं ,जिससे समाज में महिलाओं की स्थिति में बड़ी गिरावट आई हैं |समाज में इन स्त्रियों और इनसे उत्पन्न बच्चों को वह मान-सम्मान नही मिलता जिसकी वो वास्तव में हकदार होती हैं |
   समाज में बदलाव हो रहा हैं,लोग जागरूक हो रहे हैं |लोगो को पता चल रहा हैं ,कन्या भ्रूण हत्या के साईड-इफेक्ट से वे भी नही बचेंगे |आईये हम और आप संकल्प ले की 'अगर देवी की पूजा न कर  सकें तो कोई बात नही किन्तु किसी नन्ही सी एंजेल  के सर्वायिव करने के लिए ,जिन्दा रहने के लिए ,अपने आस्तित्व/वजूद को कायम रखने की लड़ाई में उसका कदम कदम पर सहयोंग करेंगे,हम चाहे विश्व के जिस भी देश में हों,चाहे जिस भी राज्य में हो यह अपराध न तो करेंगे ,न किसी को करने देंगे जरूरत पड़ने पर कानून की मदद लेंगे' ...अपनी अंतिम सांसो तक |
जय माता दी
written by- Ajay Yadav
 

मुश्किल नही हैं कुछ भी अगर.......

                      मुश्किल नही हैं कुछ भी अगर.......

            मेढकों की दुनिया का बड़ा महत्वपूर्ण दिन था |देश भर के मेढक उस विशालकाय टावर को देख रहें थे ,जो कुम्भ मेला परिक्षेत्र में निगरानी हेतु सेना द्वारा लगाया जा रहा था |टर्र ...टर्र की आवाज से पूरा क्षेत्र गूंज रहा था ,कुछ पत्रकार मेढक भी आ गये थे ,जो वरिष्ठ नेता मेढको का साक्षात्कार कर रहें थे |
    कुछ मेढकों ने टावर को अंगारे भरे आँखों से घूरा ,कुछ ने बताया की ऐसे सैकड़ो टावर पर वे पहले भी चढ़ चुंके है ,एक ही चीज अलग हैं  वे सब टावर इस टावर की तरह लाल नही थे ,बल्कि काले थे,पीले या नीले थे ...बस्स लाल को छोड़कर सब रंग के टावर थे|
     पहलवान मेढको ने अपने गुरु के निर्देशन में टॉवर पर चढ़ाई शुरू की .....| ये क्या? सब फिसले  जा रहें हैं,कोई थोडा चढ़ भी जा रहा हैं तो भी फिसल पड़ रहा हैं |मेढको में तीस-मार मेढ़क भी फिसले ...फिर मेढको के प्रोफेसर्स और शिक्षको ने ,जो युवा मेढको को 'चिकित्सा विज्ञान' ,'कला',और 'सामाजिक विज्ञान' ,'मेढकत्व और कूप-मण्डूकता' पढ़ाते थे ,और इन्टरनल तथा वायबा के मार्क्स निर्धारित करते थे ,उन्होंने कैलकुलेट किया की लाल रंग के कारण मेढक नही चढ़ सकते |मेढको के लीडर ने प्रेसवार्ता में  इस नाकामयाबी के लिए इंसानों को जिम्मेदार माना |
     अभी यह कार्यक्रम चल ही रहा था ,की एक दुबला पतला युवा मेढ़क ,भीड़ से निकला और चढ़ने लगा ...और मेढक चिल्ला कर बोले -अबे !तू नही कर सकता ,इस टावर पर कोई भी मेढक कभी भी नही चढ़ सकता ,नही चढ़ सकता ...नही चढ़ सकता..भयानक शोर मचने लगा ,मेढको के पत्रकारों ने कैमरे का रुख घुमा दिया उस युवा मेढक का पुरे शहर में प्रसारण होने लगा ,वह थोडा फिसलता जरूर था ,किन्तु उससे ज्यादा चढ़ता था .....थोड़े ही समय बाद वह टावर के शीर्ष पर था|
        थोड़े समय बाद जब वह नीचे उतरा तो पत्रकार मेढको ने उसे घेर लिया |पता चला की यह मेढक 'बहरा' हैं |लोगो के शोर को {जिसमे मेढक लोग चिल्ला कर असम्भव कह रहे थे} को उसने हौंसला अफजाई समझ लिया था ,जितना ज्यादा ऊपर चढ़ता ,उतना ही ज्यादा शोर सुनता ...उतना ही ज्यादा प्रोत्साहन समझता जाता था |
      दोस्तों !हमे भी उस मेढक की तरह बनना हैं,लोग चारो और से हमारी सीमा रेखा  निर्धारित करने की कोशिश करेंगे ,पर असल बात हमारे हौंसलों में हैं,दुनिया सलाह देंगी की 'हम ये नही कर सकते ,वो नही कर सकते' पर आपका दिल क्या कहता हैं ?अगर दिल कहता हैं की कर सकतें हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको नही रोक सकती|कोई आपको रोक सकता हैं तो वो सिर्फ आप खुद हैं |
         टावर के शीर्ष पर उस मेढक के साथ एक खास बात हुयी,वहा उसे एक भौरा मिला |वायुगतिकी के सिद्धांत के अनुसार भौरा उड़ नही सकता,पर भौरा स्कूल तो जाता नही ,वह तो सिर्फ फूल खिलाता हैं {आपने सुना होंगा -'भौरे ने खिलाया फूल...'},उसे वायुगतिकी के सिद्धांत की जानकारी तो हैं नही इसलिए वह इस ज्ञान से भौरे ने अपनी सीमाए भी निर्धारित नही किया हैं ,और उड़ता ही रहता हैं |
लेखन-{डॉ.}अजय यादव

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