3 November 2012

"उल्फत के लहूँ "

शरद पूर्णिमा की उस निःशब्द शान्ति में मैं उस गाँव की पगडंडी पर बढ़ता चला जा रहा था |दूर सुदूर से कुत्तों के भौकने की आवाजे ,सियारो के रोने की आवाजो का एक प्रवाह सा आता और फिर शांत हों जाता ,गाँव कि इस पगडंडीनुमा सड़क पर एक जीर्णशीर्ण पुलिया हैं ,जिससे सटा जामुन का एक विशालकाय वृक्ष हैं ,मैं उसी पुलिया पर वृक्ष से टेक लगाकर बैठ गया ...और गहरे विषाद कि स्थिति में आँखों के सामने अँधेरा सा छा चुका हैं |स्नेहा से मेरी मुलाकात दिल्ली के एक बड़े सरकारी अस्पताल में हुयी थी वह अपनी हृदयरोगी माँ के साथसाथ,जों कि मेरी पेशेंट थी ,आतीं थी ,मूलतः विहार के पटना कि निवासी थी और दिल्ली NIT में अभियांत्रिकी से स्नातक थीं |
शनिवार कि उस सुबह मेरी ड्यूटी फेमस CARDIOLOGIST,सीनियर रेजिडेंट और मेरी शिक्षिका डॉ इंदिरा जी के साथ थी |हमेशा कि तरह OPD फुल थी ,केस स्टडी की फाईल आतीं ,रोगी आता ....फिर नेक्स्ट ..|१९वे नम्बर पर मिसेज सिंहा थी ,और उनके साथ उनकी सुपुत्री स्नेहा सिन्हा भी थी |यह हमारी पहली मुलाकात थी ,स्नेहा कुछ बोल रहीं थी ,उसकी लबो की जुंबिश और उफक से नूर भरे चेहरे ने कुछ क्षण के लिए वक्त थाम सा दिया था ,आवाजे कुछ पलों के लिए सुनाई देनी बंद हों गयी | “डॉ साहेब” ....इंदिरा मैम की कड़क आवाज में मैं कुर्सी से उठ गया “यस मैम” !सब हंस पड़े |
रविवार की उस शाम अपने रोजमर्रा के कार्यों को निपटा कर मैं दिल्ली की गलियो में घूमने निकल पड़ा ,किसी शहर में जहां आप नये हों ,कितना अच्छा लगता हैं स्वछन्द विचरण करना |मैं आज अपने भीतर से हृदय रोग उत्पन्न होने के संभावित कारणों की तलाश में निकला था ………………….
हमारा दिल प्रेम का प्रतिनिधि हैं और रक्त खुशी का |दिल प्यार से हमारे शरीर में खुशी भरता हैं ,जब हम खुशी और प्यार को अपनाने से इनकार कर देते हैं तो हृदय सिकुड़ जाता हैं ,और ठंडा हों जाता हैं इसकी वजह से रक्त धीमा हों जाता हैं और लोग एनीमिया ,एन्जिना ,और हृदयाघात की ओर बढ़ने लगते हैं |
दोस्तों !जीवन बहुत आसान हैं ,हमे करना ५ काम चाहिये पर करते २५ हैं ,हम अपने ही द्वारा उत्पन्न किये हुए सोप ओपेरा और नाटकों में इतने उलझ जाते हैं की अक्सर उन छोटी छोटी खुशियों पर ध्यान देना भूल जातें हैं जों हमारे आस-पास होतीं हैं |हम बरसो तक अपने दिल से सारी खुशियों को निचोड़ते रहते हैं |जिससे अंत में वह पीड़ा से कराहने लगता हैं |मेरी सीनियर सर्जन बॉस अक्सर कहतीं हैं “जिन लोगों में हृदयाघात होता हैं ,वो कभी खुश नही रहते ....यदि वो समय रहते जीवन की खुशियो को अपना नही लेते तो उन्हें दूसरा हृदयाघात हों सकता हैं” |इन्ही ख्यालो में गुम चला जा रहां था,….. तभी मेरे सामने सरपट भागती एक स्कूटी अचानक से रुकी ,हेलमेट का काला शीशा उठा और स्नेहा सिन्हा की मधुर आवाज भी “हों डाक्टर बाबू .....जी ,कहाँ घुमत बटला.”..शुद्ध बिहारन शैली ,दिल बाग बाग हों गया और आवाज नही निकली |”आवा साहेब ,हमारा घर पास हिन् हैं ,मम्मी आपसे मिलकर बहुत खुश होंगी ..” मैं उनकी स्कूटी पर बैठ गया .उनकी शीरीं आवाज की प्रतिध्वनिया बार बार मेरे कर्णपटलो पर गूंज जातें ,मैं उनके साथ होने के एह्सांसो में ही खो जाना चाहता था ,हवाओं की सरसराहट और दिल की धडकन के सिवा चेतन रूप से मैं कुछ भी नही सुन रहां था |
अभिवाद्नोपरांत मिसेज सिन्हा ने कृतज्ञता भरे स्वरों में अपने पति से परिचय कराया “यही कार्डियो सर्जन हैं जिनकी कृपा से हैं आप सबके साथ हूँ”! “वोह डॉ साहेब !इस खाकसार को विशाल सिन्हा कहते हैं ,वरिष्ठ PPS OFFICER ,बिहार पुलिस” | फिर उन्होंने अपनी दबंगई के किस्से शुरू किये जों एक मुझ जैसे डॉ के लिए बकवासथी ,बातों बातों में उन्होंने पूंछा “आप कहाँ के रहने वाले हैं “ मैंने कहा “इलाहाबाद” यू पी .................भाई मैं भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का पढ़ा हूँ ..वे बात काट कर बोले “ये इलाहाबाद यूनिवर्सिटी हैं ना . अपने LOGO में लिखा .”क्वाट रामी टाट”{एक वृक्ष अनेक[हज़ार ]शाखाए }की कहावत को चरितार्थ करतीं हैं ,..मैं पूरे भारत में जहां कहीं गया हूँ ,जिन भी वरिष्ठ शिक्षकों ,बुद्धजीवियो,और नौकरशाहों से मिला हूँ ७५%से ज्यादा तो इलाहाबाद की उपजाऊँ भूमि की उपज हैं .... मैंने उनकी सहमती में सिर हिलाया बात तो सहीं ही कह रहे थे |फिर कटरा की गलियों ,नेतराम की मिठाईयां ,संगम ,आनंद भवन ,होस्टलो के चर्चे इन सबसे से खालिस इलाहाबाद माहौल तैयार हों गया |तीन घंटे कब बीत गए पता हिन् नही चला ,मैंने अनुमति मांगी तो बोले डॉ साहेब डिनर करके ही जाईये ...मिसेज सिन्हा के आग्रह को मैंने मान लिया,उनमे मेरी माँ जैसी आज्ञा झलक रहीं थी |
भारत की राजधानी दिल्ली में मिट्टीके बर्तनों में पकी दाल,चावल और मिट्टीके तवें पर सिकी रोटी की शायद आप कल्पना नही कर सकतें ....शायद यह दाल मेरे जीवन की खायी गयी सबसे स्वादिष्ट दाल थी | मिसेज सिन्हा मेरे विचारों को भांप चुकी थी वो बोली “मिट्टी ऊष्मा की कुचालक हैं ,इसमें भोजन धीरे धीरे गर्म होता हैं और सभी MICRONUTRIENTS धीरे धीरे भोजन में आ जातें हैं |ये निरापद और पौष्टिक भोजन हैं ...मैंने कहाँ ये रोटी बड़ी स्वादिष्ट हैं .मिसेज सिन्हा बोली “इस रोटी में गेहूं का आटा ,सत्तू,चने का बेशन ,एक छोटा चम्मच अश्वगंधा मिला हैं,अच्छा डॉ साहेब…! आपकी शादी हुयी की नही ?मेरा चेहरा सुर्ख लाल हों गया मैंने कहाँ “नही”!डॉ साहब शर्माते बहुत हैं कह कर मिस्टर सिन्हा हंस पड़े| भोजनोपरांत मिस्टर सिन्हा ने अपने फरजंद{पुत्र} को बुलाया “डॉ साहेब को इनके होस्पिटल तक छोड़ आओ”...मैं हॉस्पिटल लौट आया |
न जाने कितने दिनों बाद माँ के हांथो पके भोजन जैसा भोजन किया था |इस परिवार के उस दिन किये गए आतिथ्य सत्कार ने मेरे हृदय में उनका स्थान बना दिया था |OPD में अक्सर मैं मिसेज सिन्हा को ज्यादा वक्त देता, ARTIOSCLEROSIS के सिवा उनकी सब समस्याएँ दूर हों गयी थी,ARTIOSCLEROSIS के संभावित कारणों में “प्रतिरोध,तनाव ,सख्त संकीर्णता ,उत्तम को देखने से इनकार करना होता हैं”|
स्नेहा सिन्हा से बातों बातों में ही मोबाईल नम्बर मांग लिया था ,मैंने उनसे २० मिनट बात करने की अनुमति चाही और मिसेज सिन्हाको पूरी तरह ठीक करने के लिए उसकी हेल्प मांगी |मिसेज सिन्हाकी मानसिक प्रोग्रामिंग स्नेहा की मदद से मैंने काफी बदल दी थी मिसेज सिन्हा अब जीवन और खुशी को अपनाने के लिए तैयार हों चुकी थी और प्रेम को हर भावनात्मक एह्सांस में व्यक्त करतीं थी |जिसके कारण उनका हृदयरोग पूरी तरह से मिट गया ,मैंने उनकी अंतिम रिपोर्ट चेक की और उन्हें बधाई दी |यह मेरे जीवन की पहली सफलता थी |
मिसेज सिन्हा का अस्पताल आना तो बंद हों चुका था किन्तु स्नेहा के टच में बना रहा,कभी कभार अधीर होकर उसे फोन भी कर देता |एक दिन मैंने अपने दिल की बात कहने का निश्चय कर ही लिया ..मैंने फोन किया “स्नेहा!आज मुझे कुछ कहना हैं ,बिग बाजार में मिलो”...स्नेहा ने कहा “डॉ साहब ! मैं भी आपसे कुछ बताना चाहती हूँ और आपकी मदद चाहती हूँ”|मैंने पहले उसकी सुनने को निश्चय किया |
बिग बाज़ार से निकल कर हम फैमली पार्क पहुंचे और फिर स्नेह से सुनने का आग्रह किया | “डॉ साहेब ,दिल्ली की NIT से B.Tech के दौरान मेरी मुलाकात प्रवीण से हुयी ,वह बिहार का रहने वाला था |बड़े नेक ख्यालात और जाहिद कुदरत का बंदा हैं वो ...मैं उसके काफी नजदीक आ गयी ,हमारे ख्यालात बहुत मिलते जुलते हैं ,हमारी आपसी tuning जबर्दस्त हैं ..कहते कहते स्नेहा की आँखों में चमक आ गयी |b.tech के चौथे साल हमने शादी करने का निश्चय किया ,उसने पापा से मेरा हाथ माँगा ..पापा गुस्सा गए ..रातो रात पुलिसिया रोब का इस्तेमाल कर उसे उठवा लिए और रात भर उनके हमराहियो ने प्रवीण को लाकअप में इतना पीटा की वह एक पाँव से अपाहिज हों गया,उसे मरा जानकर रेलवे ट्रैक पर फेक आए थे |स्नेह के आंसू अविरत उसके गालो पर बह रहें थे ,डॉ साहब प्रवीण के एक मित्र ने बताया हैं की वह कल से दिल्ली में हैं |मैंने अपने रुमाल से उसके आंसू पोछे और सात्वना दी “सब ठीक हों जायेंगा!मैं हूँ ना”!स्नेहा सुबकते हुए बोली “डॉ मैं बिहार की बेटी हूँ!और एक बिहारन जों जबान देती हैं उसे हर कीमत पर निभाती भी हैं ,और अगर आज प्रवीन मेरे साथ शादी करने को तैयार हों गया तो चाहे पापा मेंरी जान ले ले ,मैं उसी से शादी करूंगी , डॉ बाबू |
उसकी भीष्म प्रतिज्ञा से मुझे यकीन हों गया की यह लड़की पीछे नही हटेंगी |
मैंने प्रवीण में भी वही कमिटमेंट देखा ,और साथ देने का भरोसा दिया | २ दिन बाद ही स्नेहा का फोन आया “डॉ साहब आज मैं कोर्ट मैरिज करने जा रहीं हूँ इसके बाद हम लोग हमेशा के लिए बिहार भाग जायेंगे ,प्लीज आज कोर्ट में आ जाईये ,मैंने अस्पताल से आकस्मिक अवकाश लिया और कोर्ट आ गया........ काले कोटो [कौओ]के बीच एक सफ़ेद कोट[हंस] !
उनकी शादी के बाद उन्हें ट्रेन में बैठकर भारी मन से लौट आया और तकिये में मुह छिपाकर खूब रोया .....फिर अचानक से ख्याल आया मैं क्यूँ रों रहा हूँ ...फिर बहुत हंसा...अट्टहास गूंज रहें थे, पड़ोसियों{डाक्टरों} के कान खड़े हों गए ,की भाई अभी तक न्यूरो सर्जन ज्यादातर पगलाते थे ,अब लगता हैं कार्डियो भी पगलाने लगे हैं {अपने भीतर के उस एकतरफा प्यार करने वाले रोमियो पर मैं हंस रहां था , जिसकी महबूबा दूसरों के साथ चली गयीं हों और वह खुद कमजोर महसूस कर रहा हों }|
अचानक फोन की घंटी बजी ,उस तरफ घबराई स्नेहा थी”डॉ साहेब !लगता हैं पापा को पता चल गया हैं,लोकल पुलिस के उनके एक मित्र हमराहियो सहित हर डिब्बे में किसी को धुंध रहे हैं मैं टायलेट में छुपकर उनलोगों की निगाह से बची हूँ” .मैंने कहाँ “स्नेहा अगले स्टेशन पर उतर जाओ मेरी सफेद मर्सिडीज Eक्लास ,UP-70से नम्बर शुरू हैं ,उसी में मैं मिलूँगा” |
मैंने उन्हें दिल्ली से पटना,लगभग हज़ार किमी तूफ़ान की रफ़्तार से ६ घंटे में पहुंचा कर, वापस दिल्ली आ गया |सपनो में जिस तरह सुपरमैंन की तरह गाडी चलाता... पिछली रात को जब वही चीज हकीकत में बदली तब जाकर कहीं सपनों का महत्व पता चला |
दिल्ली मैं अपने कार्य में बहुत व्यस्त हों गया कभी कभार स्नह –प्रवीण का फोन आता फिर हम घंटो बातें करते और हसतें थे ,वे दोनों बहुत खुशी खुशी जीवन बीता रहें थे.....मुझे भी आत्मिक संतोष था क्यूंकि स्नेह बहुत खुश थी |
दिन बीतते गए ,बहुत दिनों से स्नेहा –प्रवीण का नम्बर नही लग रहां था ,मैंने सोचा कुछ मशालेदार खबरे पढूं ,मैं I-NEXT का आनलाईन एडिशन खोल कर पटना के न्यूज को क्लिक किया ... “पत्नी-पत्नी की सरेआम गोली मारकर हत्या’ |छपी फोटो स्नेहा सिन्हा जैसी लगी तो पैरों तले जमीन खिसक गयी|ड्राईविंग की हिम्मत नही पड़ी | मैंने एअरपोर्ट फोन किया कोई एयरलाइन्स नही, फिर तत्काल एसी का टिकट लिया और पटना के लिए रवाना हों गया| उनके गाँव गया तो लोगों ने बताया “स्नेहा और प्रवीण को ,उनके ही आल्टो कार में ,पुलीस ‘LOGO’ लगी स्कार्पियो सवार ,लोगों ने सरेआम गोलियों से छलनी कर दिया उनमे से एक भारी बदन का मुछो वाला व्यक्ति ,करीब जाकर दोनों को दो दो गोली और मारी” ,मुछो वाले व्यक्ति को मैं समझ गया ये मिस्टर सिन्हा थे |
गाँव वाले मुझे CID का आदमी समझ रहें थे ,वे मेरे पास गुड़ और कुएँ का पानी लेकर दौड़े |साहब पानी पी लो ..पर मेरे काले चश्मे मेरी आंखो के आंसू नही छुपा पा रहें थे,इसबात से लोगों के जज्बात खुलकर उभर आये ,प्रवीण के घर वालो ने बहुत रोकने की कोशिश की,मैं नही रुका ..मैं वापस लौट कर अब इस पुलिया पर जामुन के पेड़ की टेक लेकर बैठ गया हूँ |मेरी आँखे नम हैं ,मन चिल्ला चिल्ला कर रोने का कर रहां हैं पिछले १० महीनो में उस लड़की से जिंदगी के कई अनमोल सबक सीखे थे ,शायद ही कोई पल रहां हों जब वो मेरे जेहन में ना रही हों....पता नही था की कौन सा रिश्ता था उससे, पर इतना एकदम स्पष्ट था की मैं उसके लिए पूरे सिस्टम से लड़ने जा रहां था | मैंने झुककर एक मुट्ठी मिट्टी उठाई और प्रतिज्ञा किया की जब तक दोषियो को सजा नही मिल जाती,मैं चैन से नही बैठूँगा |



{काल्पनिक कहानी ,जीवित या मृत किसी पात्र से कोई सम्बन्ध नही }

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